अ- तुम आ गए.
ब- हाँ.
अ- लोग कहते हैं अब
तुम इस दुनिया में नहीं रहे.
ब- मैं इसी दुनिया
में हूँ वरना तुम्हारे पास कैसे आता.
अ- मैं तुम्हे छूकर
देखूं?
ब- हाँ देख लो.
अ- देख लिया...
ब- हाँ तो तुम अब
देख सकती हो....मैं तुम्हारे साथ ही हूँ न. मैं इसी दुनिया में हूँ
अ- फिर सब क्यों
कहते हैं कि तुम नहीं रहे?
ब- क्योंकि, उनके लिए मैं
नहीं रहा.
अ- तो तुम सिर्फ
मेरे लिए हो अब?
ब- हाँ सिर्फ
तुम्हारे लिए.
अ- तुम हमेशा कहते
थे अपनी जिम्मेदारिओं से नहीं भागना चाहिए, फिर तुम अपने परिवार- दोस्तों को छोड़कर
क्यों चले गए?
ब- मुझपर कोई
जिम्मेदारी नहीं थी. मैंने सब जिम्मेदारियां अच्छे से निभा दी. मैं थक गया था.
आराम करना चाहता था. और मैं कहीं नहीं गया. जैसे मैं तुम्हारे साथ हूँ उनके साथ भी
हूँ.
अ- तुम ठीक कहते हो.
मैं भी थक जाती हूँ. तुमने ठीक किया तुम्हे आराम करना चाहिए. और अब तो तुम कहीं भी
आ - जा सकते हो. हर किसी के लिए एक समय में अलग - अलग मौजूद हो सकते हो.
ब- मैं हमेशा से ऐसा
ही तो था हर किसी के लिए अलग - अलग. किसी ने मुझे पूरा एक साथ नहीं महसूस किया. हर
आदमी के साथ ऐसा ही होता है उसे कभी पूरा एक साथ कोई महसूस नहीं कर पाता.
अ- हाँ ऐसा ही होता
है.
अ - तुम्हे वह लोकगीत याद है जो हम साथ - साथ गाया करते थे?
ब- हाँ, मुझे याद
है.
अ- और वह गाँव के देवताओं
वाली छेड़छाड़ की कहानियां जो तुम मुझे सुनाते थे? अब कोई मेरे लिए गीत नहीं गाता. कोई मुझे कहानियां नहीं
सुनाता.
ब- तुम तो सभी को
कहानियां सुनाती हो न. लेकिन गीत मत गाना. तुम्हे एकदम गाना नहीं आता. :-)
अ- हाँ मैं नहीं
गाती. मेरी सांस फूल जाती है.... तुमने सिगरेट छोड़ दी ?
ब- हाँ मैंने छोड़
दी. तुमने ही कहा था छोड़ने को.
अ- हाँ मैंने कहा
था. मुझे पसंद नहीं था. तुम भी तो मुझसे शराब छोड़ने को कहते थे.
ब- तुमने छोड़ी?
अ- हाँ. कब की.
मैंने छोड़ दी.
अ- क्या तुम मुझे
प्रेम करते हो?
ब- हाँ.
अ- जब तुम जिंदा थे
तब तुमने "हाँ" नहीं कहा था. क्यों ?
ब- मैंने “नहीं” भी
नहीं कहा था.
अ- हाँ कहने से तब...
कोई नियम टूटता था?
ब- हाँ, टूटता था. मैंने हमेशा नियम माने. तुमने कभी
नहीं माने.
अ- लेकिन मैंने
हमेशा तुम्हारे नियमों का सम्मान किया. और उन लोगों का भी जो नियम मानते हैं.
हालंकि मैं उन लोगों का कम सम्मान करती हूँ जो नियम बनाते हैं.
ब- जो मानते हैं वही
तो बनाते हैं न, फिर उनका सम्मान
क्यों नहीं?
अ- क्योंकि नियम
बनाने वाले दंड भी बनाते हैं. और कई बार यह उन्हें मिलता है जो दोषी नहीं होते.
ब- तुम हमेशा की तरह
बहुत उलझी हुई हो इस मुद्दे पर भी.
अ- जहाँ उलझने हों,
वहीँ उनका हल ढूँढने की कोशिश की जाती है,
है न. जिस दिन हम सवालों से मुक्त हो जाएँ हम
जवाबों से भी वंचित हो जायेंगे.
ब- तुम्हे उलझने
पसंद है यह मैं हमेशा से जानता था. लेकिन ये सब तुम्हे कष्ट देंगे. तुम्हे चीजों
को हद में तय करना सीखना चाहिए.
अ- जिन चीजों की हद
है ही नहीं.. उन्हें भी हद में बाँध दूं?
ब- हाँ, एक हद तो बनानी होती है, जैसे ही हम मान लेते हैं यह इसकी हद है. वह हद हो जाती है.
अ- जैसे ही हम मान
लें वह हद हो जाती है. लेकिन वह सत्य तो नहीं है न. वह सिर्फ एक मान्यता है.
ब- वह झूठ भी नहीं
है. हमने उसपर विश्वाश किया. उसे मान दिया.
अ- झूठ ही है. जब मन सच जानता है और झूठ पर यकीं नहीं करता तो यह झूठ है. और झूठ को हम सच बना कर जी रहे होते हैं. या जीने की कोशिश
कर रहे होते हैं. यह भी एक धोखा है. धोखा, जो हमने खुद को दिया.
ब- लेकिन इससे नियम
नहीं टूटे. किसी को दंड नहीं मिला.
अ- सिवाय खुद के.
तुमने नियम नहीं तोड़े फिर भी तुम्हे दंड मिला.
ब- बोर्हेस कहते थे - All it takes to die is to be alive. मर जाना कोई दंड नहीं
है. एक दिन सभी मरते हैं. वो जिन्होंने नियम तोड़े वो भी जिन्होंने नहीं तोड़े.
अ- वो भी जिन्हें दंड
मिला, वो भी जिन्हें नहीं मिला.
ब- हाँ.
अ- तुम जा रहे हो?
ब- हाँ.
अ- फिर आओगे?
ब- हाँ. जब भी तुम बुलाओगी.
मैं आऊंगा.
अ- ...क्योंकि अब तुम
नियमों से आज़ाद हो इसलिए?
ब- ..नहीं ....क्योंकि . अब तुम नियम मानने लगी हो इसलिए.
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