Friday, July 31, 2015

प्रतीक्षा



चित्र - साभार गूगल


तुम्हे प्रेम करना लक्ष्य से अधिक खुद को रास्तों में बदलते देखना है
तुम्हारी प्रतीक्षा करना घडी की सुईयों से कालचक्र में बदलते जाना है
फिर भी मैंने तुम्हे एक निमंत्रण पत्र लिखा जिसमे पता नही था
उसे सबसे नाकारा हरकारे को थमा कर मैंने आँखें बंद कर ली 
उस निमंत्रण पत्र में तुम्हारे आने की किस्तें बंद थी

तुम मेरे पास किसी बेकल खोजी की तरह आना
कल्पनाओं को हक़ीक़त में बदलने वाले कीमियागर की शक्ल लिए
हम इतिहास के अधूरे सपने को  उन दराजों में से निकालेंगे
जिसमे गुम कर दी गई सबसे पुराने विद्रोहों की कथा
हम विद्रोहों को डोर खोलकर आज़ाद कर देंगे
कल्पनाओं को भविष्य के सतरंगी चित्र में बदल देंगे
फिर तुम मेरे पास कामकाजी सोमवार की तरह आना 
मैं तुम्हारी उपस्थिति बेतरतीब फाइलों में समेट लूंगी 
जब तुम चले जाओगे किसी अंधियारी रात
खिडकी सी आती तेज़ हवा बिखेर देगी प्रेम के संचिकाओं के सब पन्ने 
उन्हें समेटते मैं रख दूँगी उनपर अनंत प्रतीक्षाओं का पेपरवेट 


तुम गहरी नींद के सबसे उत्ताप स्वपन की तरह आना
स्वपन जो इतना तीक्षण हो कि वितृष्णा की परतें भेद सके
और समयों के अंत तक मैं उनपर शब्दों का चंदन लपेटती रह जाऊं
तुम्हारे स्पर्शों का ताप मध्यम करने के लिए 

किसी दिन तुम मिलना ट्रेन के किसी लम्बे सफ़र में
अनजान  पर अपने से लगते मुसाफिर की तरह
इस दौर में भी जब भरोसे भय बन गए हैं
मैं हिम्मत करके पूछ लूंगी तुमसे कॉफी के लिए 
फिर हम दुनिया के दुःख सुख के जरा से साझेदार बनेंगे
जीवन भर साथ चलने के वादे तो ज़ाया हुए
पर हम किसी सफर में कुछ घंटे साथ चलेंगे

फिर तुम तानाशाहों के मिटने की खुशनुमा खबर की तरह आना
जिससे मजलूमों के सुनहरे कल की कवितायी उजास छिटके
सदियों की चुप्पी तोड़कर तुम्हारे शब्द मैं अपने होठों पर रख लूँ
मेरी मुस्कराहट उसे तराश कर एक उजियारी रक्तिम सुबह में बदल दे
मैं जब अगली बार हँसू तो वे धरती के अंतिम छोर तक बिखर जाएँ

तुम आना ऐसे कि हम पूरा कर सके वह सपना
जिसमे पीस देते हैं हम अपना तन क्रूरताओं की चक्की में
न हम खून से प्रेम पत्र लिखते है न बृहद्कथा
चक्कियों से टपकते अपने रक्त को हम आसमानों में पोत देते हैं
कि उससे  बना सकें एक नवजात सूरज 
जो भेद सके  किलेबंदियों के तमाम अंधियारे

{ यह कविता तीन कविताओं की स्मृति को समर्पित है... जिसमे से पहली तो अमृता प्रीतम की कविता "मैं तुझे फिर मिलूंगी है" .. दूसरी अशोक वाजपेयी की "फिर आऊँगा " और गीत चतुर्वेदी की इस ( यूट्यूब लिंक https://www.youtube.com/watch?v=qnRpyVwTQ9A ) काव्यात्मक अभिव्यक्ति "मैं आऊँगा " की स्मृति को... इसकी उत्पति का श्रेय इन्ही कविताओं को है. }

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