यों तो सब जीतना ही सीखते हैं
लेकिन तुम हारना भी सीखना
जब कोई कहे रूकना या जाना तुम्हारा फैसला है
तब तुम खुद से हार कर रुक जाना
याद रखना कोई प्रतीक्षा करे
तो लौट कर ना आने के लिए तुम स्वतंत्र नही
तुम्हारी आवक पर किसी की राह देखती
नज़र की रौनक उधार है
कोई भोजन बनाए तो भूखे रह जाने के लिए
तुम स्वतंत्र नहीं तुम्हारी ज़िद से दबा दी गई भूख पर
किसी के हाथों में बसने वाले स्वाद की तृप्ति उधार है
कोई फटे चिथड़े देखकर तुम्हारे लिए गर्म पंखों का लबादा बुने
तो ठंढ में मर जाने के लिए तुम स्वतंत्र नही
तुम्हारी ठंडी होती देह पर किसी के स्पर्श का ताप उधार है
रोकना अपने उस अहम को जो हार जाने के आड़े आता है
सीखना कैसे अंगुलिमाल की आँखों की लाल आग हार जाती है
तथागत की निर्दोष आँखों की पनीली करुणा से
समझो कि इसमें सिर्फ बुद्ध की तो करामात नहीं थी
तुम ऐसे हारना कि मन लबालब भरा लगे
उस घड़े की तरह जो पानी की मुसलसल धार से
हार कर अंततः भर जाता है
फिर किसी प्यासे के तृप्त हो जाने तक
इंतज़ार करता है फिर से हराए जाने के लिए
गर तुम्हें टूटना पड़े तो ऐसे टूटना
जैसे बेहद पका मीठा फल टूटता है टहनी से
उसका हर बीज धरती की देह को छूकर
नया पौधा बन जाने की इच्छा करता है
फिर से जन्म लेकर असंख्य बार टूटने के लिए
जब तुम खत्म होना तो उस सुन्दर कविता की तरह
जो हर बार अलग कविता का बीज बनकर फूटती है
सुदूर देश के किसी अनजान पढने वाले के मन में
नए रूप में फिर से अपने लिखे जाने के लिए
ऐसे बिखरना जैसे खेत बोने के लिए किसान
मुट्ठी भरकर बीज बिखेरता है
लहलहाती फ़सल की कल्पना में वह खुद हरा हो जाता है
तुम फ़सल की आशा में उसका हरा होता चेहरा देखना
इस तरह बिखेरे जाने के लिए तैयार होना
जबकि सनकी रणबांकुरों के ज़ालिम हाथ
दुनिया की रुपहली सिवन उधेड़ेंगे
हराए जाने के अफ़सोस को एक तरफ करके तुम
प्रेम की छोटी सी सूई से दुनिया के टुकड़े रफ़ू करना
जब कोई भूख से सूखकर मुरझाए शरीर में भोजन की तरह रिसे
सफ़ेद हथेलियों में ख़ून की गुलाबी आभा की जगह भर जाए
तब आत्मा के सोख्ते से प्रेम सोखने के लिए
उसकी बगल में निश्चेष्ट करवट सोना.
(हंस के जनवरी 2017 अंक में प्रकाशित )
लेकिन तुम हारना भी सीखना
जब कोई कहे रूकना या जाना तुम्हारा फैसला है
तब तुम खुद से हार कर रुक जाना
याद रखना कोई प्रतीक्षा करे
तो लौट कर ना आने के लिए तुम स्वतंत्र नही
तुम्हारी आवक पर किसी की राह देखती
नज़र की रौनक उधार है
कोई भोजन बनाए तो भूखे रह जाने के लिए
तुम स्वतंत्र नहीं तुम्हारी ज़िद से दबा दी गई भूख पर
किसी के हाथों में बसने वाले स्वाद की तृप्ति उधार है
कोई फटे चिथड़े देखकर तुम्हारे लिए गर्म पंखों का लबादा बुने
तो ठंढ में मर जाने के लिए तुम स्वतंत्र नही
तुम्हारी ठंडी होती देह पर किसी के स्पर्श का ताप उधार है
रोकना अपने उस अहम को जो हार जाने के आड़े आता है
सीखना कैसे अंगुलिमाल की आँखों की लाल आग हार जाती है
तथागत की निर्दोष आँखों की पनीली करुणा से
समझो कि इसमें सिर्फ बुद्ध की तो करामात नहीं थी
तुम ऐसे हारना कि मन लबालब भरा लगे
उस घड़े की तरह जो पानी की मुसलसल धार से
हार कर अंततः भर जाता है
फिर किसी प्यासे के तृप्त हो जाने तक
इंतज़ार करता है फिर से हराए जाने के लिए
गर तुम्हें टूटना पड़े तो ऐसे टूटना
जैसे बेहद पका मीठा फल टूटता है टहनी से
उसका हर बीज धरती की देह को छूकर
नया पौधा बन जाने की इच्छा करता है
फिर से जन्म लेकर असंख्य बार टूटने के लिए
जब तुम खत्म होना तो उस सुन्दर कविता की तरह
जो हर बार अलग कविता का बीज बनकर फूटती है
सुदूर देश के किसी अनजान पढने वाले के मन में
नए रूप में फिर से अपने लिखे जाने के लिए
ऐसे बिखरना जैसे खेत बोने के लिए किसान
मुट्ठी भरकर बीज बिखेरता है
लहलहाती फ़सल की कल्पना में वह खुद हरा हो जाता है
तुम फ़सल की आशा में उसका हरा होता चेहरा देखना
इस तरह बिखेरे जाने के लिए तैयार होना
जबकि सनकी रणबांकुरों के ज़ालिम हाथ
दुनिया की रुपहली सिवन उधेड़ेंगे
हराए जाने के अफ़सोस को एक तरफ करके तुम
प्रेम की छोटी सी सूई से दुनिया के टुकड़े रफ़ू करना
जब कोई भूख से सूखकर मुरझाए शरीर में भोजन की तरह रिसे
सफ़ेद हथेलियों में ख़ून की गुलाबी आभा की जगह भर जाए
तब आत्मा के सोख्ते से प्रेम सोखने के लिए
उसकी बगल में निश्चेष्ट करवट सोना.
(हंस के जनवरी 2017 अंक में प्रकाशित )