" - कोई ऐसा ख्याल भी है जो तुम्हे दहशत से भर देता है?
-हाँ है. यह कि मैं उनके चहरे भी भुला दूं जिनसे मैंने कभी प्रेम किया."
समय, स्मृति पर से सब कुछ धो देता है. उसकी धार पानी की पतली पन्नी की तरह शीशे से लगी बहती रहती है, और हम दूसरी तरफ खड़े देखते रह जाते हैं सब कुछ धुंधलाते हुए. फिर एक समय बाद हम पलट कर चल देते हैं आगे.
धीरे - धीरे उदासीनता हर चीज पर राख की पतली परत बिछा देती है, और हमारा फूंक मारने का भी मन नहीं करता.