एक
पक्षी था. अपने कुटुंब के साथ आसमानों तक उड़ान भरता हुआ. उसकी नज़र तेज़ थी.
वह दूर तक देख लेता था. उसके कान तेज़ थे वह दूर की आवाजें सुन लेता था. एक
दिन आसमान में उड़ते हुए उसे एक बैलगाड़ी दिखी. गाड़ीवान ऊँची आवाज में
चिल्लाता जा रहा था "दो दीमकें लो, एक पंख दो ". पक्षी को दीमकें बहुत पसंद
थी. वे आसानी से नहीं मिलती थी, उनके लिए ज़मीन तक आना पड़ता था. यह बड़ी
सुविधा थी कि स्वादिष्ट दीमकें कोई महज़ एक पंख के बदले दे रहा था. पक्षी
नीचे आता है. पेड़ की डाल पर बैठता है. गाड़ीवान और पक्षी के बीच सौदा पक्का
होता है. हालाँकि अपनी चोंच से एक पर खींच कर तोड़ने में पक्षी को दर्द तो
होता है, लेकिन दीमकों का स्वाद उसे यह दर्द भुला देता है.
पक्षी का पिता उसे यह समझाने की कोशिश करता है कि दीमकें हमारा स्वाभाविक आहार नहीं है, और इसके बदले पंख तो हरगिज़ नहीं दिए जा सकते. पक्षी नहीं मनता है. वह हर तीसरे प्रहर आकाश से नीचे धरती में पेड़ की डाल तक आता एक पंख देता, और दो दीमकें ले जाता. दीमकों की लत लग गयी थी उसे.
एक दिन उसने उड़ने की क्षमता खो दी. अब वह सिर्फ दो पेड़ों तक फुदक ही पाता था. लेकिन दीमक बेचने वाले का भरसक इंतजार करता. कभी - कभी गाड़ीवाले को देर हो जाती, कभी वह नहीं भी आता था. पक्षी ने सोचा अब से मैं खुद धरती पर जाकर दीमकें जमा करूंगा . बात की बात में उसने ढेर सारी दीमकें जमा कर लीं. वह खुश हुआ .जब गाड़ीवाला आया पक्षी ने कहा "देख लो, मैंने ढेर सारी दीमकें जमा कर लीं ". गाड़ीवाले को कुछ समझ नहीं आया, "तो ?" उसने पूछा . "मुझसे दीमक लेकर मेरे पंख दे दो" पक्षी ने कहा . अब गाड़ीवाला हंसा, "मैं पंखों के बदले दीमकें देता हूँ. दीमकों के बदले पंख नहीं" गाड़ीवाले ने जवाब दिया और गाड़ी मोड़कर चलता बना.
पक्षी हतप्रभ डाल पर बैठा रह गया. एक दिन बिल्ली आयी और उसे खा गयी.
-
कथा "मुक्तिबोध" की है. मैंने संक्षेप में लिखा है. कथा के और कई अर्थ हो सकते हैं लेकिन मुझे न जाने क्यों इस कथा में हर बार एक स्त्री का अस्तित्व दीखता है.
प्रेम हो या जीवन पंख न खोने दीजिए, पंख आसानी से नहीं उगते.
पक्षी का पिता उसे यह समझाने की कोशिश करता है कि दीमकें हमारा स्वाभाविक आहार नहीं है, और इसके बदले पंख तो हरगिज़ नहीं दिए जा सकते. पक्षी नहीं मनता है. वह हर तीसरे प्रहर आकाश से नीचे धरती में पेड़ की डाल तक आता एक पंख देता, और दो दीमकें ले जाता. दीमकों की लत लग गयी थी उसे.
एक दिन उसने उड़ने की क्षमता खो दी. अब वह सिर्फ दो पेड़ों तक फुदक ही पाता था. लेकिन दीमक बेचने वाले का भरसक इंतजार करता. कभी - कभी गाड़ीवाले को देर हो जाती, कभी वह नहीं भी आता था. पक्षी ने सोचा अब से मैं खुद धरती पर जाकर दीमकें जमा करूंगा . बात की बात में उसने ढेर सारी दीमकें जमा कर लीं. वह खुश हुआ .जब गाड़ीवाला आया पक्षी ने कहा "देख लो, मैंने ढेर सारी दीमकें जमा कर लीं ". गाड़ीवाले को कुछ समझ नहीं आया, "तो ?" उसने पूछा . "मुझसे दीमक लेकर मेरे पंख दे दो" पक्षी ने कहा . अब गाड़ीवाला हंसा, "मैं पंखों के बदले दीमकें देता हूँ. दीमकों के बदले पंख नहीं" गाड़ीवाले ने जवाब दिया और गाड़ी मोड़कर चलता बना.
पक्षी हतप्रभ डाल पर बैठा रह गया. एक दिन बिल्ली आयी और उसे खा गयी.
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कथा "मुक्तिबोध" की है. मैंने संक्षेप में लिखा है. कथा के और कई अर्थ हो सकते हैं लेकिन मुझे न जाने क्यों इस कथा में हर बार एक स्त्री का अस्तित्व दीखता है.
प्रेम हो या जीवन पंख न खोने दीजिए, पंख आसानी से नहीं उगते.
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