Tuesday, August 7, 2018

स्मृतियाँ.

दो दिन पहले मैंने जयंत महापात्र को देखा, बात की. उनका कविता पाठ सुना. वे मंच की सजावटी हलकी रौशनी में कविता नहीं पढ़ नहीं पा रहे थे. लोगों को मोबाईल की रौशनी देते हुए उनके बगल में खड़े होकर उनकी मदद करनी पड़ी. जब वे मंच से उतरे हाल में उपस्थित सभी लोग उनके सम्मान में खड़े हुए. तालियों से सभागार गूंज रहा था. यह इस आधुनिकतम शहर की बात है. वह शहर जिसे सिर्फ पैसे से जोड़कर देखा जाता है. मुझे एहसास हुआ कविता का सम्मान अब भी शेष है इस देश में, ऐसा ही अनुभव हर बार तब हुआ है जब मैंने अपने प्रिय कवियों को घेरती भीड़ देखी है.

कविता के प्रेमी प्रेत की तरह दुनिया के अँधेरे में अदृश्य उपस्थित रहते हैं, कवि उनके शामन (shaman) है. वे सिर्फ तब प्रकट होते हैं जब उनका कवि उनके समक्ष होता है, उन्हें बुलाता है, उनका आह्वान करता है.

(कविता महोत्सव, पांच अगस्त - 2018, बंगलुरु )

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