अभी इस जगह पर
मैं अभी एक पुलिसवाले के गनपॉइंट पर हूँ। चारों तरफ़ ताबड़तोड़ गोलियाँ चल रही है। मेरे जैकेट की जेब में एक रिवाल्वर है, मैं उसे निकालने के लिए हाथ बढ़ाती हूँ, लेकिन निकाल नहीं पाती। कैसे निकालूं? आखिर मैं किसी फिल्म में तो हूँ नहीं, जहाँ रिवाल्वर कहीं से मिलते ही कहानी के पात्र को उसे चलाना आ जाता है और उसका निशाना भी कभी ग़लत नहीं होता। मैं चुपचाप हाथ खड़े कर देती हूँ। आखिर मैं कोई अपराधी नहीं हूँ! इस वक्त मेरा दिल धौंकनी बना हुआ है। ज़िन्दगी के तमाम अच्छे बुरे पल अभी इस समय मुझे याद आ रहे हैं। लेकिन मैं अभी मर कैसे सकती हूँ! मैंने अभी ही तो ज़िन्दगी शुरू की है। इसके पहले तो मैं बस ज़िन्दगी की तैयारी ही करती रही थी। स्कूल जाना, यूनिवर्सिटी जाना। ढंग की नौकरी ढूंढ़ना। ये ऐसे काम थे जिनके आगे मैंने कभी कुछ सोचा ही नहीं! क्या मैं आज ही मर जाऊंगी? नहीं-नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए। अभी तो मुझे बहुत जीना है। मुझे प्यार करना है। शादी करनी है। अपने बच्चे और फिर उनके बच्चों को बड़ा होते देखना है।
अगर मैं अभी मर गई, तो कभी अपनी विशलिस्ट पूरी नहीं कर पाऊँगी। कभी मिकेलांजलो के डेविड को नजदीक से नहीं देख सकूंगी। कभी यूरोप घूमने नहीं जा सकूंगी और कभी संसार के आखिरी समन्दर के तट पर पत्थर पर बैठ कर डूबते सूरज को नहीं देख सकूंगी। मेरी माँ और छोटा भाई मेरे बिना क्या करेंगे? यह सोच कर मुझे बहुत ज़ोर-से चिल्ला कर रोने का मन हुआ।
यह सब बेहद अजीब है। लेकिन मैं चकित नहीं हूँ, अजीब चीजें मेरे साथ बचपन से होती रही हैं। जैसे सड़क पर चलते हुए कोई अनजान सुन्दर औरत मुझे देख मुस्कुरा देती और अभिवादन में सिर झुकाती। एक बार मैं चलते–चलते ठोकर खाकर गिर गई तो न जाने कहाँ से एक बूढी औरत आई और उसने मेरी खरोचों पर हाथ फेरा। मेरे सारे घाव तुरंत उसी समय ठीक हो गए। मैं कुछ कहती, इससे पहले वह स्त्री न जाने कहाँ गायब हो गई। ऐसा नहीं है कि इन अजीब बातों के बारे में मैंने किसी को बताया नहीं। मैंने अपनी माँ को बताने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने हँस कर टाल दिया। उन्हें लगा, मैं अधिक कल्पनाशील बच्ची हूँ और जानबूझ कर कहानियाँ बना रही हूँ। अधिक बोलने पर लोग मुझे पागल समझने लगते, इसलिए मैं धीरे-धीरे चुप होती गई।
आज मेरे साथी, जोकि मेरे किडनैपर्स भी हैं, मेरी सुरक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं। सामने पुलिस और हम लोगों के बीच जबरदस्त फायरिंग चल रही है। अभी कुछ देर पहले एक गोली मेरी पोनिटेल को छूकर निकली। मैं डर कर चीख पड़ी। क्या मैं इतने सदमे में हूँ? कि यह भी तय नहीं कर सकी कि मुझे भागना चाहिए या नहीं?
मैं यानि मुग्धा शर्मा, एक साधारण युवती आज नामी–गिरामी आर्ट कलेक्टर पी. सी. छब्बर का निजी संग्रहालय लूटने आई हूँ। यह संग्रहालय राजस्थान के एक पहाड़ी महल में है। जी नहीं, आप गलत समझ रहे हैं। मैं पेशेवर अपराधी या चोर नहीं हूँ। और जैसा कि थोड़ी देर पहले मैंने आपको बताया, मुझे इस रिवाल्वर के उपयोग की ज़रा भी जानकारी नहीं है, जो इस वक्त मेरी जेब में है। मैं छब्बीस बरस की एक साधारण-सी लड़की हूँ। पेशे से वायरोलॉजिस्ट हूँ। एक रिसर्च संस्थान में काम करती हूँ। मैंने कभी एक अमरूद भी नहीं चुराया है। मैं अनाथ हूँ और मुझे मेरी माँ की सबसे प्रिय सहेली ने पाला है। कल तक मेरी ज़िन्दगी सींक की तरह सीधी और आसान थी। आज वह टैरो कार्ड के ‘हैंग्ड मैन’ की तरह पेड़ से उलटी लटक रही है।
जो मेरे साथ इस लूट में शामिल हैं, वे मेरे किडनैपर हैं। जिनसे हम लड़ रहे हैं, वह पुलिस है। लेकिन यह भी मेरी बुरी हालत बताने के लिए काफी नहीं है। जिस रिसर्च पर मैं महीनों से काम कर रही थी, वह मुझे बिना किसी को बताये हमेशा के लिए मेरे किडनैपर्स के हवाले करना पड़ेगा। ये लोग मुझे एक ऐसी यात्रा पर लेकर आए हैं, जिसका कारण और गंतव्य दोनों ही मुझे मालूम नहीं है। पिछले १२ घंटे में कई ऐसी बातें हुई हैं, जिनपर विश्वास करना मेरे लिए नामुमकिन है। वैसे तो मेरी पूरी जिंदगी पर ही विश्वास करना मुश्किल है। मेरी ज़िन्दगी में हुई कई घटनाओं का सिरा अगर जोड़ा जाए, तो आपको मालूम होगा कि मैंने एक अविश्वसनीय ज़िन्दगी जी है।
उदाहरण के लिए इसी घटना को ले लीजिए। एक बार कॉलेज में मैं और मेरी सहेलियाँ एक हिस्ट्री-ट्रिप पर पास के जूनागढ़ में एक मध्यकालीन राजा का महल देखने गई थीं। हमने अपने बैग्स लगेज काउंटर पर जमा करा दिए। हमें नंबर वाले छोटे टोकन मिले। टोकन लौटाने पर हमें अपने बैग वापस मिल जाते। मैंने टोकन जीन्स की जेब में रख लिया। वहाँ हमें एक बेसिक मोबाइल फोन जैसा डिवाइस दिया गया। उसके साथ एक सस्ता ईयरफोन भी था। मैंने उसे कान में लगाया और वह डिवाइस ऑन की। उसमें बस एक ही सॉफ्टवेयर लोड था। मैंने सॉफ्टवेयर शुरू करने के लिए ओके का बटन दबाया। सॉफ्टवेयर ने एक पुरुष की आवाज में अभिवादन किया और भाषा का विकल्प पूछा। मैंने हिंदी का विकल्प चुना। यह एक ऑडियो गाइड था, जो महल के एक–एक हिस्से और पास से गुजरने वाली हर चीज़ की डिस्क्रिप्शन बता रहा था। महल में हर जगह नंबर लिखे बोर्ड लगे थे। जैसे ही आप नंबर के पास पहुँच कर वही नंबर फोन में दबाते, वह सॉफ्टवेयर उस जगह की पूरी जानकरी देता था। मैं महल देखते हुए और ऑडियो सुनते हुए घूमने लगी।
ऑडियो हर चीज़ की बारीकियाँ बता रहा था। जैसे महल का यह हिस्सा किसलिए इस्तेमाल होता है, कोई पेंटिंग जो वहाँ लगी है वह किस पेंटिंग की कॉपी है, अगर ओरिजिनल है तो किस चित्रकार ने बनाई है। मैं वास्तु और इतिहास से मुग्ध होकर देखती-सुनती घूम रही थी। मेरे सहपाठी भी आस-पास ही थे।
मैं अपने सहपाठियों के साथ परकोटे पर बने शेड से नीचे की घाटी को देख रही थी। जब तेज़ धूप लगी, तो मेरा ध्यान इस बात पर गया कि सूरज सर पर आ गया है। मैं छाया में जाने के लिए सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी। परकोटे की सीढ़ियाँ जहाँ खत्म होती थी, उसके ठीक सामने, एक छोटा-सा दरवाज़ा था। यह दरवाज़ा उतना अलंकृत नहीं था, जितना कि महल के बाक़ी दरवाजे थे। मैं जब वहाँ से गुजरी, इस दरवाजे का सादापन देखकर आकर्षित हुई। किसी अज्ञात प्रेरणा ने जैसे मेरे कदम रोक लिए हो। मैं वहाँ ठिठकी। तभी मेरी आडियो फ़ाइल पॉज हो गई। मैंने सोचा, शायद मुझसे गलती से पॉज का बटन दब गया होगा। मैंने उसे दुबारा चालू करने के लिए ‘प्ले’ बटन दबाया।
तब, पहले फोन से एक मधुर धुन सुनाई दी। फिर एक स्त्री की बहुत मधुर आवाज आई।
“मुग्धा, इस तरफ़ आओ।” उस स्त्री स्वर ने कहा।
मैं संगीत और इस पुकार से मंत्रमुग्ध-सी हो गई — जैसे किसी सम्मोहन में होऊं। मैंने एकदम नहीं सोचा कि फोन में इस तरह एक सॉफ्टवेयर से कोई मुझसे बात कैसे कर सकता है? उसी सम्मोहन की दशा में मैं उस सादे एकाकी दरवाजे की तरफ़ बढ़ी। मेरे हाथ लगाते ही दरवाज़ा खुल गया। वहाँ हलकी रोशनी थी। आवाज और पुकार के सम्मोहन से बंधी मैं बिना रुके आगे बढ़ती ही जा रही थी। मुझे महसूस हो रहा था, जैसे कोई मुझे लगातार पुकार रहा हो। आगे एक गलियारे को पार करके मैं एक अजीब-से गोल कमरे में पहुँची। वहाँ ज़मीन पर एक चाकू रखा था, हल्की रोशनी में भी चमकता हुआ।
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