Monday, January 23, 2023

"लवली" के फल

 कल साप्ताहिक सब्जी ख़रीदने के दौरान मुझे "लवली" के फल दिखायी पड़े. लवली आंवलें जैसे ही होती है लेकिन स्वाद में थोड़ी कम कडवाहट, अधिक अम्लीय और कम काष्ठीय. इसका आकार जैसा की आप चित्र में देख सकते हैं, षट्कोण जैसा होता हैं आंवले जैसा गोल नहीं होता. इसे मैंने उत्तर भारत में कभी नहीं देखा था.

 


 

संस्कृत साहित्य में "लवली" का अक्सर ज़िक्र मिलता है. इसपर मेरी एक कविता भी है. जिसे मैंने कठ बीज का शीर्षक दिया है.



कठबीज
कसैले- खट्टे आमले का कठबीज है दिल
मरूं तो गाड़ना नहीं, जला देना मुझे
कसैले फलों का पेड़ किसी के काम का नहीं होता.

फीका न रह जाए इसलिए मन को
अधिक ही पका दिया मैंने

देर तक पकी चाय कि तरह
तेज़ और कड़वे हो गये मन के बोल

किसी को परोसने से पहले
इसकी थोड़ी मात्रा में
बहुत सारा पानी मिलाती हूँ 

त्वचा छोड़ कर मेरी पलकें अक्सर
सूदूर ब्रह्माण्ड में तैरती हैं, बिना पतवार

जितनी देर प्रेमी एक दूसरे को अपलक देखते हैं 
मैं उनकी पलकें ओढ़कर सोती हूँ

देर तक देखती रही मैं अपनी हथेलियाँ
हाथों कि रेखाएं
झुर्रियां बनकर माथे पर ऊग आयीं

हीरा बनीं दिल में गहरे दबी आंसू की एक बूँद
उसी के बराबर का कोई दूसरा हीरा
तराश सकेगा उसे   

जीवन के सागर में दुःख के सब भारी पत्थर डूबे
कविता की पंक्तियाँ लिखी थी जिनपर 
तैरे केवल वे ही दुःख  

उनपर पैर रखकर ही पार किया मैंने अथाह जल
कविता सेतु है मेरा
       मेरे ईश्वर का नाम शब्द है.

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना।

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