अपने प्यारे देश पेरू को भूलने के लिए एक लेखक फिरेंज़ की गलियों में भटकता
है, उसे एक चित्र प्रदर्शनी दिखाई पड़ती है. वह जानता है कि अंदर जाना उसे
फिर से पेरू की याद दिलाएगा और उसके व्यक्तिगत जीवन को भावनात्मक भँवर में
फंसा देगा, फिर भी एक अदृश्य आकर्षण उसे अंदर ले जाता है। वह सारे चित्र
देखता है, व्यग्र होता है लेकिन एक चित्र ऐसा है जो उसकी आँखों के आगे एक
क्षण के लिए विस्फोट की सी स्थिति उत्पन्न कर देता है। वह तुरंत वहां बैठे
लोगों से चित्र को खरीदने की इच्छा ज़ाहिर करता है लोग कहते हैं यह चित्र
बिकाऊ नही है , इसे सिर्फ अवलोकनार्थ यहाँ लगाया गया है और जिस फोटोग्राफर
ने उसे खींचा था वह अमेज़ान से लौटते वक़्त ही वहां के भयानक मच्छरों द्वारा
काटे जाने के फलस्वरूप बुखार से मर गया है। कोई भी बड़ा शोध या महान कला बलिदान माँगती है।
यह लेखक और कोई नही मारिओ वार्गास योसा (Mario Vargas Llosa) है। जिस चित्र ने उसे अतीत में ले जाकर किंकर्तव्यविमूढ़ छोड़ दिया था उनके प्रिय मित्र और कॉलेज सहपाठी "साउल" का है, जिसने अच्छी भली शहरी जिंदगी और अकादमिक शिक्षा छोड़कर एक आदिवासी यायावर कथावाचक की जिंदगी का संकल्प ले लिया था। कहानी के मूल नायक साउल की बात करें तो कहा जा सकता है जिनका नाता जंगलों - पहाड़ों से रहा है वे जानते हैं कि जंगल आपको जीवन के किसी मोड़ पर नही छोड़ते, आप जहाँ जाएंगे जंगल आपके साथ जायेगा। आप बार - बार उसे छोड़कर आ जाने की विवशता का अनुभव करते हुए उसे हर तरीके से भूलने की अपने मन के उससे लगाव के कारण हुई क्षति को पूरा करने की कोशिश करेंगे पर आप असफल साबित होंगे और जिंदगी भर त्रस्त रहेंगे। यही हाल कथावाचक साउल का भी हुआ था। यह देखने में बड़ा सामान्य लगता है, पर क्या यह इतना ही सामान्य है?
जब सांस्कृतिक स्रोत - साहित्य को संरक्षित करने की बात आती है तो जो शासक की भाषा और उससे जुड़े मिथक होते हैं वे तो संरक्षित कर दिए जाते हैं परन्तु दूसरा पक्ष अनदेखा रह जाता है। यही लगभग विश्व के हर हिस्से में आदिवासी साहित्य और लोक - साहित्य के साथ हुआ है। लोककथाओं को लिखे जाने उन्हें सम्हाल के रखने के संस्थागत प्रयास बहुत कम हुए है। हमारे देश में तो यह गूलर के फूलों को देख पाने जैसी बात है। खैर इसपर अभी अधिक नही लिखूंगी किताब पर लौटती हूँ।
मूलतः स्पेनिश भाषा में "एल आब्लादोर (El Hablador) " के नाम से आई यह किताब अंग्रेजी में द स्टोरीटेलर (The Storyteller) शीर्षक से और हिंदी में संभवतः "क़िस्सागो" शीर्षक से राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है.
यह किताब दो स्तरों में कथा को व्याख्यायित करती चलती है, पहले में लेखक अपनी और अपने मित्र साउल की कथा कहते है दूसरे में वे माचीग्वेंगा आदिवासी कहानियों को मूल कथा में गूंथते चलते हैं. लेखक आपको जादूगरों - जादूगरनियों, शैतानों, बौनों और भला करने वाली आत्माओं के ऐसे लोक में ले जाते हैं जहाँ आप मंत्रमुग्ध से दर्शक बने सबकुछ अपने सामने घटित होता देखते हैं। .यह अद्भुत किताब है और उससे भी अद्भुत है लेखक की शैली उनका चयन और बात कहने का उनका तरीका। मैं इसे पढ़े जाने की पुरज़ोर सिफारिश करती हूँ. समयाभाव के कारण बहुत लिख पाना तो अभी मेरे लिए सम्भव नही पर किसी दिन समय मिला तो मैं इस किताब पर अलग से लिखना चाहूंगी।
- लवली गोस्वामी
यह लेखक और कोई नही मारिओ वार्गास योसा (Mario Vargas Llosa) है। जिस चित्र ने उसे अतीत में ले जाकर किंकर्तव्यविमूढ़ छोड़ दिया था उनके प्रिय मित्र और कॉलेज सहपाठी "साउल" का है, जिसने अच्छी भली शहरी जिंदगी और अकादमिक शिक्षा छोड़कर एक आदिवासी यायावर कथावाचक की जिंदगी का संकल्प ले लिया था। कहानी के मूल नायक साउल की बात करें तो कहा जा सकता है जिनका नाता जंगलों - पहाड़ों से रहा है वे जानते हैं कि जंगल आपको जीवन के किसी मोड़ पर नही छोड़ते, आप जहाँ जाएंगे जंगल आपके साथ जायेगा। आप बार - बार उसे छोड़कर आ जाने की विवशता का अनुभव करते हुए उसे हर तरीके से भूलने की अपने मन के उससे लगाव के कारण हुई क्षति को पूरा करने की कोशिश करेंगे पर आप असफल साबित होंगे और जिंदगी भर त्रस्त रहेंगे। यही हाल कथावाचक साउल का भी हुआ था। यह देखने में बड़ा सामान्य लगता है, पर क्या यह इतना ही सामान्य है?
जब सांस्कृतिक स्रोत - साहित्य को संरक्षित करने की बात आती है तो जो शासक की भाषा और उससे जुड़े मिथक होते हैं वे तो संरक्षित कर दिए जाते हैं परन्तु दूसरा पक्ष अनदेखा रह जाता है। यही लगभग विश्व के हर हिस्से में आदिवासी साहित्य और लोक - साहित्य के साथ हुआ है। लोककथाओं को लिखे जाने उन्हें सम्हाल के रखने के संस्थागत प्रयास बहुत कम हुए है। हमारे देश में तो यह गूलर के फूलों को देख पाने जैसी बात है। खैर इसपर अभी अधिक नही लिखूंगी किताब पर लौटती हूँ।
मूलतः स्पेनिश भाषा में "एल आब्लादोर (El Hablador) " के नाम से आई यह किताब अंग्रेजी में द स्टोरीटेलर (The Storyteller) शीर्षक से और हिंदी में संभवतः "क़िस्सागो" शीर्षक से राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है.
यह किताब दो स्तरों में कथा को व्याख्यायित करती चलती है, पहले में लेखक अपनी और अपने मित्र साउल की कथा कहते है दूसरे में वे माचीग्वेंगा आदिवासी कहानियों को मूल कथा में गूंथते चलते हैं. लेखक आपको जादूगरों - जादूगरनियों, शैतानों, बौनों और भला करने वाली आत्माओं के ऐसे लोक में ले जाते हैं जहाँ आप मंत्रमुग्ध से दर्शक बने सबकुछ अपने सामने घटित होता देखते हैं। .यह अद्भुत किताब है और उससे भी अद्भुत है लेखक की शैली उनका चयन और बात कहने का उनका तरीका। मैं इसे पढ़े जाने की पुरज़ोर सिफारिश करती हूँ. समयाभाव के कारण बहुत लिख पाना तो अभी मेरे लिए सम्भव नही पर किसी दिन समय मिला तो मैं इस किताब पर अलग से लिखना चाहूंगी।
- लवली गोस्वामी
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